जातीय आरक्षण का सच...
कोयरी हूँ मै और मैं पिछड़ा नही हूँ। ना मुझे सर्वणो से दिक्कत है न दलितों से..
क्यों मानू अपने को मैं पिछड़ा क्या सिर्फ उस आरक्षण नामक वैसाखी के लिए,अभी मेरी उम्र 23 वर्ष है ।भारत में उतर से दक्षिण और पश्चिम तक घुम चुका हूँ और अभी सऊदी अरबिया में हूँ। कुछ अपवादों को छोड़कर कोई कोयरी भुखा नही सोता,ना आरक्षण के के लिए लालायित रहते है।इसका उदाहरण यह है की गोपालगंज(बिहार) में हम उपनाम सिंह लगाते है। तो लोग समझते है क्षत्रिय,जब वर्मा लगाते है तो लोगो को भरम हो जाता है लाला तो नही है न ।और एक दृष्टि से देखे तो हमारे अंदर सनातन की एक झलक भी दिखती है। इसका एक छोटा उदहारण कुशवाहा लग्न है जिसमे 20 प्रतिशत शादिया कुशवाहा उपनाम वाले पण्डित कराते है।
हमारा जातीय पेशा खेती है,अब कोई(डॉ अम्बेडकर) आ के कहे की खेती करना तो बहुत कठिन काम पुरे दिन काम करना,कोई छुटी नही,कड़ी धुप बारिश,कड़ाके की ठण्डी पुरे साल मेहनत करो फिर भी फायदा कुछ नही क्योकि कभी बारिस नही होती,कभी बाढ़ आ जाती और फसल का उचित मूल्य नही मिलता ।और देखो उन पंडितो को छाँव में बैठे रहते है बस थोडा बहुत कलम इधर-उधर कर दिया और चैन की जिंदगी जी रहा है,उसे तो आराम ही आराम है। तुम्हारा तो शोषण किया गया है तुम्हे बेवकूफ बनाया है ,अनपढ़ बनाया है। ये मजे करे और तुम खेती करो। विरोध करो इन पंडितो का खेती करना छोड़ के तुम भी पढ़ो और नौकरी करो बाबु बनो तुम भी इन्होंने तुम्हारा इस्तेमाल किया है अब तक,इतने बर्षो तक इन्होंने तुमसे खेती कराया है। इसलिए तुम भी आरक्षण मांगो,एक बात का विशेष ख्याल रखो भूलकर भी खेती और पढ़ाई एक साथ मत करना क्योकी अगर तुम खेती के साथ भी पढ़ाई करोगे तो भी पिछड़ा और अनपढ़ ही कहलाओगे,खेती छोडो बहुत खेती कर लिए तुम अब तुम बाबु बनो बाबु और सिर्फ बाबु,नही तो खेती करने से अच्छा तुम दैनिक मजदुर बन जाओ ।
लेखक : कृष्णार्जुन कुशवाहा
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